न्यूज़, खबरें, समाचार यह सब एक ही शब्द के पर्यावाची हैं, इन सभी शब्दों का अर्थ एक ही है कि लोगों तक किसी भी माध्यम से संदेश पहुंचे। हिंदुस्तान में आज़ादी के पहले से अब तक 4 प्रमुख माध्यम रहे हैं जिनके प्रयोग से संदेश पहुंचाने का काम किया जाता रहा है। पहला- समाचार पत्र, दूसरा रेडियो, तीसरा टेलीविज़न और चौथा सोशल मीडिया।
सोशल मीडिया कैसे बन गया ट्रेंड
- 2008 में ऑरकुट (Orkut) से हिंदुस्तान में सोशल मीडिया की शुरुआत हुई।
- 2006 में फेसबुक (Facebook) वर्ल्ड वाइड लॉन्च हुआ पर हिंदुस्तान में ये 2010 में प्रचलन में आया।
- 2006 में ट्विटर (twitter) वर्ल्ड वाइड लॉन्च हुआ पर हिंदुस्तान में यह 2012 में प्रचलन में आया।
यह तो थे वह माध्यम जिनसे हमें खबरें प्राप्त होती रही हैं और इन सभी माध्यम के श्रोता हर प्रान्त में अलग अलग देखने को मिल जायेंगे। पर क्या इन सभी माध्यम और उन माध्यम में भी अलग मीडिया हाउसेज़ की खबर का स्रोत भी अलग होता है। इस बात से कम ही लोग वाकिफ हैं।
यूं तो सभी मीडिया हाउस दावा करते हैं अपनी खबरें एक्सक्लूसिव होने का मगर क्या उनके अपने किसी कॉरस्पॉन्डेंट द्वरा कवर की गई खबरें सच में एक्सक्लूसिव होती हैं? तो इसका जवाब है नहीं!
अगर बात करें न्यूज़ पेपर की तो हमारे देश में हज़ारों न्यूज़ पेपर और मीडिया चैनल्स हैं जिनमें मुख्य धारा वाले 100 पेपर और चैनल तो ज़रूर हैं जो अपने-अपने प्रान्तों में प्रमुखता से उनकी विश्वसनीयता के आधार पर पढ़े या देखे जाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि इन अखबारों या चैनलों में जो खबरें होती हैं ठीक वही खबरें हू-बहू दूसरे अखबारों और चैनलों में भी देखने को मिल जाती हैं बस हेडिंग के बदलाव के साथ।
घर चलाना है तो थोड़ा इधर-उधर तो करना ही होगा!
ऐसे शुरू होती है वह पत्रकारिता जो आज पूरे देश में चल रही है। इसमें उनको भी क्या गलत मानूं। बेचारे समाज का सारा काम छोड़कर पत्रकार बन गए और भला अब घर-बार भी देखना है, बच्चों को भी पालना है तो उन सब ज़रूरतों को पूरा करने के लिए थोड़ा इधर-उधर करना जायज़ है।
अब दो युवा की बाइक दुर्घटना में मौत हुई इस खबर को ऐसे लिखने में हर्ज़ ही क्या है कि मुसलमान युवक की गलती के कारण होनहार हिन्दू युवक की सड़क दुर्घटना में हुई मौत। बस लफ्ज़ों का चयन अलग है बाकी मौत तो दो तब भी है मगर हां शायद उस पत्रकार के कुछ पैसे बन गए।
बिना पत्रकारिता की पढ़ाई किए आज स्ट्रिंगर्स किस तरह फेक न्यूज़ को बढ़ावा दे रहे हैं?
बिना पत्रकारिता की पढ़ाई किए आज स्ट्रिंगर्स और यह स्वयं नियुक्त पत्रकार किस तरह फेक न्यूज़ को बढ़ावा दे रहे हैं इसका एक ताज़ा उदाहरण तबलीगी जमात वाले केस में देखा जा सकता है। वहां के लोगों के आइसोलेशन में जाने के बाद मीडिया में खबरें चलाई गईं।
उन खबरों में यह बताया गया कि उत्तरप्रदेश के एक शहर के अस्पताल में तबलीगी जमात के लोगों ने नर्स के साथ छेड़छाड़ की। एक-एक पुराना वीडियो पेज पर अपलोड कर बताया गया कि दिल्ली में तबलीगी जमात के लोगों ने पुलिस वालों पर थूका और तेलंगाना में 2 तबलीगी जमात के लोगों ने 6 लोंगो को किया संक्रमित।
फिर सोशल मीडिया पर चल रहे उस थूकने वाले वीडियो की तह में की गई पड़ताल से पता चला कि वह 1 साल पहले किसी कैदी के पेशी के वक्त का था और सबसे महत्वपूर्ण 6 लोगो को संक्रमित होने वाली बात पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने खुद बयान देकर गलत ठहराया और ऐसी अफवाहों से दूर रहने को कहा।
दोषी कौन?
तो इसमें दोष किसे दिया जाए, हां यह भी सच है कि सभी मीडिया हाउस का अपना एक एजेंडा होता है लेकिन उस एजेंडा को सेट करने में सबसे महत्वपूर्ण रोल इन लोगो का भी है जो फेक न्यूज़ के माध्यम से सनसनी फैलाते हैं, क्योंकि वे सुनी-सुनाई बातों को तथ्य मानकर उसे रिपोर्ट कर देते हैं।
यही वह कमी है क्योंकि एक पत्रकार को किसी खबर को रिपोर्ट करने से पहले उसकी पुष्टि करने को कहा जाता है और यहां तबलीगी जमात वाले केस में यहां तक बता दिया गया कि पुलिस केस हो गया है बिना पुलिस से पुष्टि किये हुए।
फेक न्यूज़ के कारण भी इस देश में पत्रकारिता का स्तर गिरता जा रहा है। उसकी सबसे बड़ी वजह है उन प्रोफेशनल लोगों का इस फील्ड में होना जो ना ही पत्रकारिता के एथिक्स जानते हैं ना ही कोई प्रोफेशनल एक्सपीरियंस है उनके पास।
इसलिए आज के दौर में ज़रूरत है उन जॉर्नलिज़्म ग्रेजुएट्स को मुख्य धारा में लाने की। इससे पत्रकारिता का स्तर भी बढ़ेगा और साथ उन ग्रेजुएट्स को रोजगार भी मिलेगा।