कोरोना वायरस जैसी भयावह बिमारी और लॉकडाऊन की मार न जाने कब तक सहनी पड़ेगी। अब इसे पुलिस के डंडो का डर कहें या फिर सावधानी लोग कोरोना वायरस के चलते अपने-अपने घरों में बंद हैं और परेशान हैं। इनमें भी वो लोग जो नशेबाज हैं उनकी चुनौती दूसरी ही है। लोग जहां 21 दिन पूरे होने की बाट देख रहे थे वहीं लॉकडाउन-2 का शुरू हो जाना किसी सदमे से कम नहीं है। नशे की लत हो या फिर नॉनवेज का लजीज स्वाद लोगों की बेचैनी बढ़ा रहा है। नशेडिय़ों को शराब, गुटखा और सिगरेट जैसी चीजों को लेने के लिए तमाम तरह के पापड़ बोलने पड़ रहे हैं। हालात कुछ ऐसी हैं कि किसी भी तरह के नशे की आदत करने वाले लोगों को अपना घर नशा मुक्ति केंद्र लगने लगा है। नशे की दीवानगी किस हद तक आदमी की मति भ्रष्ट कर देती है इसे समझना हो तो हम तमिलनाडु का रुख कर सकते हैं। यहां शराब न मिल पाने के कारण तीन व्यक्ति इतना विचलित हो गए कि उन्होंने अपने नशे की प्यास बुझाने के लिए पेंट और वार्निश पी लिया जिसके चलते उनकी मौत हो गई।
शुरुआती जांच में कुछ दिलचस्प चीजें निकल कर सामने आई हैं । पुलिस को पता चला कि तीनों ही व्यक्ति बुरी तरह से शराब के लती थे और बीते कई दिनों से उन्हें शराब नहीं मिली थी। अपनी लत को दूर करने के लिए तीनों ही व्यक्ति साथ बैठे और पेंट वार्निश को पानी में मिलाया और पी गए। पीने के बाद तीनों उल्टी करने लगे। हालात बिगडऩे में अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां तीनों की मौत हो गई।

तमिलनाडु की ही तरह पूर्व में केरल में भी ऐसे ही मामले सामने आया। बीते दिनों केरल में शराब ना मिल पाने के कारण लोग आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो गए। मामले का संज्ञान खुद राज्य सरकार ने लिया और आदेश पारित किया कि व्यक्ति शराब तभी पी सकता है जब डॉक्टर, सर्टिफिकेट दे हालांकि, राज्य सरकार के इस आदेश पर केरल हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
दक्षिण से ही मिलता जुलता हाल उत्तर का भी है। उत्तर भारत में भी शराबी हैं और ये भी उतने ही बेचैन हैं जितने दक्षिण के शराबी। ये भी अपनी लत को पूरा करने के लिए तमाम तरह की जुगत भिड़ा रहे हैं। दिमाग किस हद तक भिड़ाया जा रहा है इसे हम उस गिरफ्तारी से समझ सकते हैं जो दिल्ली में हुई है। दिल्ली पुलिस ने बॉबी नाम के व्यक्ति को पकड़ा है। बॉबी पर आरोप है कि वो दूध की 4 टंकियों में शराब लेकर जा रहा था। बॉबी शराब गुडग़ावं से लेकर आया था और उसे ये पूरा माल गाजिय़ाबाद में डिलीवर करना था।
ये तो हो गयी शराबियों और नशाखोरों की बात, कुछ ऐसा ही हाल उनका है जो मांसाहारी (नॉन वेज) खाते है। कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच ऐसी तमाम दुकानें जो मांस बेचती थीं बन्द है जिस कारण लोग बेचैन हैं और दोगुनी तीन गुनी कीमत पर मांस खरीदने को तैयार हैं।
सोशल मीडिया पर तमाम वो ग्रुप्स जो खाने पीने और फूडीज को समर्पित हैं उनमें लगातार ऐसी क्वेरी आ रही हैं जिनमें लोग एक दूसरे से मांस को लेकर बात कर रहे हैं। लोगों का मत है कि जितनी दुश्वारी उन्हें लॉक डाउन से नहीं हो रही उससे ज्यादा परेशानी उन्हें नॉन वेज के न मिलने से हो रही है।

जनता नॉनवेज न मिलने से इतनी बेचैन है कि वो सोशल मीडिया पर भी औरों से सलाह मांग रही है कि क्या किया जाए? लोग ये तक पूछ रहे हैं कि क्या संकट के इस समय कबूतर जैसे जीवों का शिकार किया जा सकता है?
बहरहाल जैसी हालत हम शराबियों और मांसाहारियों की देख रहे हैं उसके बाद ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि हमारे आपके विपरीत लॉकडाउन खुलने की सबसे ज्यादा जल्दबाजी इन लोगों को है। ये लोग बस यही चाह रहे हैं कि कैसे भी करके 19 दिन पूरे हों और ये लोग अपने मन का कर पाएं जो इन्हें तृप्त कर सके। देखना दिलचस्प रहेगा कि सरकार इनकी इच्छा की पूर्ति करती है या नहीं?